'क्रौंच के फिर आज देखो शर लगा है' डॉ. वीरेन्द्र कुमार शेखर की उन काव्य रचनाओं का संग्रह है, जो उनकी मूल विधा ग़ज़ल से इतर लिखी गई हैं। अपवाद स्वरूप ही एकाध ग़ज़ल भी संग्रह में शामिल है। गीत, कविता, छंदमुक्त कविता, नज्म, मुक्तक, कुंडलियां आदि कितनी ही विधाओं से सजा है यह संग्रह। संग्रह में 65 मुक्तकों की उपस्थिति बताती है कि इस विधा में कवि की विशेष रुचि है। जैसा पुस्तक के शीर्षक से स्पष्ट है, अधिकांश कविताएं समय- समय पर कवि-मन को आहत कर देने वाली स्थितियों से उपजी हैं अतः इनका अपना अलग महत्व है। कोरोना- काल की कई रचनाएं कवि के संवेदनशील मन का प्रमाण हैं। पुस्तक में इन कविताओं की कवि की अपनी प्रस्तावना 'अपनी बात' के रूप में एक अत्यंत पठनीय और विचारणीय आलेख बन है, जिससे साहित्य के विषय में कवि की गहरी और परिपक्व समझ का पता चलता है। संग्रह में डॉ. लाल रत्नाकर के रेखांकन इसकी रचनात्मकता को अपना अलग संस्पर्श देते हैं।
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