मिस-कम्युनिकेशन से गुड-कम्युनिकेशन तक
राह में जाते हुएदो मित्र आपस में मिले।दोनों को कम सुनाई देता था। मिलते ही एक ने पूछा, 'कहाँ जा रहे हो?' दूसरे ने उत्तर दिया, 'मैं मंदिर जा रहा हूँ।' जिस पर पहले ने कहा, 'अच्छा-अच्छा, मुझे लगा कि तुम मंदिर जा रहे हो।' इस परदूसरे ने फिर से जवाब दिया, 'नहीं-नहीं मैं तो मंदिर जा रहा था।'
खैर, यह तो एक चुटकुला था मगर इससे समझनेवाली बात यह है कि कई बार ऐसा ही कुछ हमारे साथ भी होता है। हम कहते कुछ हैं और सामनेवाला समझता कुछ और है, सामनेवाला कहता कुछ है और हम समझते कुछ अलग हैं।
इस तरह रोज़मर्रा के जीवन में मिस-कम्युनिकेशन होती रहती है क्योंकि हम कम्युनिकेशन करने का एक ही तरीका जानते हैं। हम उसी तरह से बातचीत करते हैं, जो हम बचपन से सुनतेऔर सीखतेआए हैं।
अब समय आया है गुड-कम्युनिकेशन के तरीके जानने का क्योंकि आपको अपने भाव और विचारों को व्यक्त करने के लिए कम्युनिकेशन करना ही पड़ता है।वरना सामनेवालाआपके मन की बात कैसे समझेगा?
यदि आप कम्युनिकेशन के बेहतरीन और अलग आयाम जानना चाहते हैं तो इस पुस्तक का लाभ लें औरअपने कम्युनिकेशन में नया चाँद लगाएँ।